व्रत के नियम | पंडित अविनाश पाठक
व्रत धेयम सत्य धारणं अस्ति व्रत का उद्देश्य जीवन में सत्य को लाना है क्योकि
ईश्वर सत्य में निहित हैं। जीवन मे सत्य आये इसलिए व्रत को किया जाता हैं, सत्य से साहस, सुख प्रभु कृपा आती हैं
व्रत कब किया जाता है?
व्रत का अर्थ संकल्प भी है, ईश्वर एक है पर जिस रूप आप उन्हें मानते हो उनकी तिथि, नक्षत्र देखकर व्रत किया जाता हैं
व्रत कैसे किया जाता है?
सबसे पहले नित्य क्रिया करने के बाद
स्वक्ष वस्त्र पहले और हाथ में जल लेकर व्रत संकल्प करे
तब व्रत शुरू होता है।
और उस दिन मन, वचन और कर्म को एक कर सकते है।
जमीन पर सोने का नियम है क्योकि यह 5 तत्वों मे से एक है ।
व्रत मे क्या खाया जाता है?
यह कौन सा व्रत है उससे तय होता है पर तीन नियम है
1-फलाहार - केवल फल का
आहार एक बार
2- केवल दुग्ध आहार
3- एक बार भोजन सूर्य के समय या चंद्र के समय
यह व्रत के अनुसार होता है
इन तीनो में से एक नियम अपना ले
व्रत मे क्या किया जाता हैं?
- जप करे
- भजन करें
- अध्यात्मिक चिंतन करें
- सत्संग करें किसी संत या पंडित के साथ
- किसी पुराण शास्त्र का अध्यन
- दान सबसे ज्यादा फलदायी होता है। किसी सुपात्र को करें यह जरूर ध्यान रखे
व्रत में क्या नही किया जाता?
- तामसिक वचन (निंदा, परिहास, )
कर्म (काम भावना)
वस्तुये वर्जित (धूम्रपान, गुटका वर्जित)
- दिन में न सोये
- बार बार न खाये
व्रत कब पूर्ण होता है?
जब आप नियम पूर्वक अपने संकल्प को पूरा करते हैं
और याद रखे सूर्य उदय से शुरू हुआ व्रत अगले सूर्य उदय स्नान के बाद ही पूर्ण होता है।
रात के 12 बजे नही
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